Thursday, October 22, 2009

"Sex is our personal property"


हर स्त्री चाहती है की उसकी चूत में जो लिंग घुसता है उसकी मोटाई,लम्बाई और रगड़ में कुछ नयापन हो. हर पुरुष चाहता है की जिस योनी में वो रोज अपना लिंग घुसाता है उसकी कसावट,गहराई और ग्रिप में कुछ परिवर्तन हो. मगर हम सब अपने चेहरे आर ईमानदारी का झूठा मुखोटा लगाकर जीना पसंद करते हैं.
करोडों औरतें अपने नीरस सेक्स जीवन से ऊबी हुई हैं. पुरुष अपने उदासीन सम्भोग से उकताए हुए हैं. मगर दोनों अपने-अपने चेहरों पर झूठी नैतिकता और ईमानदारी का मास्क ओढे रहते हैं.वो चाहते हैं की कोई आये जो उनकी रसहीन सेक्स लाइफ में रंगों का इन्द्रधनुष बन जाये........मगर ऐसी स्वतंत्रता नहीं है.
औरतें चाहती हैं कि उनकी योनी में जो लंड घुसें वो अलग-अलग साइज़ के हों. जो हाथ उन्हें छुएं उनका स्पर्श कुछ अलग हो...... जो होंठ उनके होंठों को अपनों जकड में लें वो कुछ भिन्न मर्दानगी लिए हुए हों. मगर कोई भी कह नहीं सकता. कहने या न कहने से फर्क नहीं पड़ता..ज़रूरत सच्ची और पूरी तरह प्राकृतिक है.
मैं आम आदमी की काम-स्वतंत्रता का हिमायती हूँ. मेरा मानना है की "Sex is our personal property" ये सच भी है. "काम हमारी व्यक्तिगत सम्पत्ति है

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