Sunday, November 22, 2009

अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो


अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो ,उतार दो यह पैराहन, चांदनी कर दो . चली भी आओ मैं जकड़ूँगा तुम को बाँहों से ,मैं पीना चाहता हूँ आज बस निगाहों से . दिखा के अपना हुस्न मेरे होश गुम कर दो ,कि आज प्यार की पहली पहल भी तुम कर दो . चले भी आओ तड़प के हमारी बाँहों में ,कि अपनी सांस मिला दो हमारी सांसों में . मेरे जलते हुए होठों पे अपने लब रख दो ,उतार दो ये कपडे पलंग पे सब रख दो . मैं अपने लबों को रख दूँ तेरे रुखसारों पे ,और अपने हाथ फिराऊँ तेरे उभारों पे . तुझे सर से पाँव तक मैं चूमता ही रहूँ ,तेरे कंधे , तेरी छाती को चूसता ही रहूँ . मैं चाहता हूँ छेड़ना तेरे तेरे अंगारों को ,दबा के चूस के पी लूँगा इन उभारों को . तेरा वोह अंग जो दुनिया में सब से प्यारा है ,मैं उसे जीभ से चाटूं तेरा इशारा है . फिरा के हाथ बदन पे मैं सज़ा दूँ तुझको ,फिर अपनी जीभ से ज़न्नत का मज़ा दूँ तुझको . मेरे लिए भी तो यह काम एक बार करो ,मुंह में लेके चूसो इसे और प्यार करो . फिर आओ इसके बाद एक हो जाएँ हम तुम ,मुझे अपने बदन में पूरा समा लेना तुम . और इस खेल में आखिर में वोह मुकाम आये ,मेरे बदन में जो भी कुछ है तेरे काम आये